zindagi ak patte ki tarah hoti hai... jab tak shaakh se lagi rahti hai sabko chhav deti hai... aur jab tut jati tab bhi kisi na kisi ke kaam aa hi jati hai
Thursday, June 11, 2020
हमसफ़र
Tuesday, June 9, 2020
तू लौट के जब घर कभी नहीं आएगा
तुम तो लूट बैठे हो
सब कुछ अपना हार कर
दिन का सुख-चैन
रातों की नींद वार कर
तुम तो खो चुके हो
अपने खवाबो की उड़ान में
तुम्हे क्या होश-ओ-खबर
क्या हो रहा है हिंदुस्तान में
तुम तो सो गए हो
अपनी ही दुनिया के हो गए हो
तुम्हे क्या फर्क पड़ता है
तेज़ हवाओ से
किसी की चीख निकले तो निकले
दम कब घुटता है तुम्हारा
रोते हुए चट्टानों से
तुम्हे क्या इल्म हो इसका
कौन रातों से है भूखा सोया
तुम्हे क्या परवाह है
देश तुम्हारी लापरवाही से
क्या कुछ है खोया
तुम बस मगन रहो
अपनी बनाये जाल में
तुम्हे क्या परवाह है
क्या हो रहा है
तुम्हारे बिहार में
तुम अमीरों के हो कर रह जाओगे
तुम बदनामी में खो जाओगे
तुम्हे जचता नहीं ईमानदारी का सूखा खाना
तुम्हे तो अभी और दूर है जाना
फिर लौट एक दिन
नंगे पाँव घर आओगे
फिर रोओगे- पछताओगे
अब भी वक़्त है सम्हाल जा
देख जमाने का रास्ता
खुद घर को निकल जा
माँ-बाप के आंगन में खिले फूल चाहे कम
पर सुना अंगना उसे भी बहुत सताएगा
तू लौट के जब घर कभी नहीं आएगा
नेहा ‘अमृता’
राजकोट (गुजरात)
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