समुन्दर की लहरों के
सिमटे बादल हो तुम
तन्हाई की बरसात के
गुनगुनाते बंजारे हो तुम
जो सिमटा है अक्सर
लबों पे मेरी मोती की तरह
उन मोतियों की बरसात के
एक सहारे हो तुम
कश्मकश में जब उलझ
जाता है दिल मेरा
खोया..खोया.. रहता है जब
अकेलेपन में साया मेरा
उस अँधेरी रात के
उजले तारे हो तुम
कैसे लिख दू लफ़्ज़ों में
मेरे हमसफ़र हो तुम
नेहा 'अमृता'
बहुत खूबसूरत....बेहतरीन शब्द संचयन, कविता अच्छी लगी ।
ReplyDeleteमैं सच में बहुत खुश हूँ की आपको मेरी कविताये पसंद आती है, आप ऐसे ही मुझे हौसला देते रहे
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