Thursday, June 11, 2020

हमसफ़र

समुन्दर की लहरों के
सिमटे बादल हो तुम
तन्हाई की बरसात के
गुनगुनाते बंजारे हो तुम

जो सिमटा है अक्सर
 लबों पे मेरी मोती की तरह
उन मोतियों की बरसात के
एक सहारे हो तुम
कश्मकश में जब उलझ 
 जाता है दिल मेरा
खोया..खोया.. रहता है जब
अकेलेपन में साया मेरा
उस अँधेरी रात के
उजले तारे हो तुम
कैसे लिख दू लफ़्ज़ों में
मेरे हमसफ़र हो तुम
      नेहा 'अमृता'

2 comments:

  1. बहुत खूबसूरत....बेहतरीन शब्द संचयन, कविता अच्छी लगी ।

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    1. मैं सच में बहुत खुश हूँ की आपको मेरी कविताये पसंद आती है, आप ऐसे ही मुझे हौसला देते रहे

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