मेरी प्रेरणा है तू
मेरी कल्पना है तू
क्या है, क्यूँ है
मै नहीं जानती
पर, मेरा है तू
कुछ धुंधला है
कुछ अनछुआ
कुछ खामोश सा है तू
मै नहीं जानती
पर, मेरा है तू
कुछ बेमतलब सा है तू
कुछ मेरी आशाओ की परिभाषा सा है तू
मै जानती हूँ
बस मेरा है तू
नेहा 'अमृता'
राजकोट
चंद लब्जों में...कितना कुछ बयाँ कर दिया आपने!...बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
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