Monday, October 12, 2020

दोस्ती

 कहाँ से शुरू करू 

दोस्ती के मतलब बताना

थाम ले जो हाथ 

बिन मेरे कुछ बोले

वो है असली दोस्त


कहाँ से शुरू करू

दोस्ती की दहलीज़ 

पर खड़े हो कर 

बिन वादा किये 

हर वादे को निभा जाना

सच कहू तो वो है असली दोस्त


पर ये सब तो और भी रिश्तों में 

शायद मिल भी जाये

पर जो स्कूल के दिनों में

लंच गलती से छूट जाने पर

अपनी लंच बॉक्स आगे कर 

ये कह देना की देखो

आज मम्मी ने तुम्हारे 

पसन्द की सब्जी बनाई है

बस सारी बाते साइड में 

दोस्त की बात मान कर 

दो मिनट में लंच खत्म कर देना 

यही है असली दोस्ती निभाना

Tuesday, October 6, 2020

उन पर नज़र रखते है

चोरी छुपे ही सही 

हम उस पर नज़र रखते है 

उसे अपने करीब शाम-ओ-सहर रखते है 


कुछ कहते है कुछ छुपाते है

कुछ कहते है कुछ छुपाते है 

कुछ बातो में सबर रखते है 

चोरी छुपे ही सही 

हम उस पर नज़र रखते है 


कोइ कहता है अगर उसके बारे में 

तो हम मशरूफियत अपनी खुद में रखते है 

हम सुनते है सब, पर कहते कुछ नहीं 

की हम उन पर भरोसा से भरा जीवन रखते है 

चोरी छुपे ही सही 

हम उन पर नज़र रखते है 


दो-चार लफ्ज़ तो उनकी भी सुन ही लेते है 

दो-चार अपनी भी सुना देते है

मन-ही-मन कितना चाहते है 

ये भी कभी-कभी उनको बता देते है 


ये नहीं की खोने का डर है हमे 

ये नहीं की खोने का डर है हमे 

बस उन पर नज़र रखते है 

वजह इतनी सी है 

उनको किसी की नज़र ना लगे इसलिए

उन पर नज़र रखते  है 


नेहा 'अमृता'

Wednesday, September 23, 2020

मेरी अमावस्या की रात को







मेरी अमावस्या की रात को

पूर्णिमा की चादर दे ना सके तुम

सब कुछ तो दे दिया तुमने

पर ये आसमां दे न सके तुम

पूछने को तो तुमने

चाँद तारों की सच्चाई पूछ ली

भींगी मेरी पलकों की वजह

जाने क्यू पूछ ना सके तुम

मेरी अमावस्या की रात को

पूर्णिमा की चादर दे ना सके तुम..

नेहा ‘अमृता’

मेरी प्रेरणा है तू

 




मेरी प्रेरणा है तू

मेरी कल्पना है तू

क्या है, क्यूँ है

मै नहीं जानती

पर, मेरा है तू

कुछ धुंधला है

कुछ अनछुआ

कुछ खामोश सा है तू

मै नहीं जानती

पर, मेरा है तू

कुछ बेमतलब सा है तू

कुछ मेरी आशाओ की परिभाषा सा है तू

मै जानती हूँ

बस मेरा है तू

नेहा 'अमृता'

Thursday, September 3, 2020

प्यास रहती है...

मिट जाता हूँ मैं जिस रूह में 
वो क्या प्यास  से भी प्यासी रहती है

जिस ज़िन्दगी में एक आश हैं 
वो सदियों से बहुत कुछ कहती हैं

मर जाता है मन  मेरा 
पर सपने को  उड़ान रहती हैं

मिट जाता हूँ मैं जिस रूह में
वो क्या प्यास  से भी प्यासी रहती हैं

कुछ ख्वाबों के ताने-बाने थे 
कुछ मंजिले धुंधली 

कुछ रिश्तों में एहसास उदास रहती है 
मर जाता है मन  मेरा 
पर सपने को उड़ान रहती हैं... 

नेहा 'अमृता'
राजकोट

Sunday, August 30, 2020

बस मेरा है तू

मेरी प्रेरणा है तू 
मेरी कल्पना है तू
क्या है, क्यूँ है 
मै नहीं जानती 
पर, मेरा है तू

कुछ धुंधला है
कुछ अनछुआ
कुछ खामोश सा है तू
मै नहीं जानती 
पर, मेरा है तू

कुछ बेमतलब सा है तू
कुछ मेरी आशाओ की परिभाषा सा है तू
मै जानती हूँ
बस मेरा है तू

नेहा 'अमृता'
राजकोट

Thursday, June 11, 2020

हमसफ़र

समुन्दर की लहरों के
सिमटे बादल हो तुम
तन्हाई की बरसात के
गुनगुनाते बंजारे हो तुम

जो सिमटा है अक्सर
 लबों पे मेरी मोती की तरह
उन मोतियों की बरसात के
एक सहारे हो तुम
कश्मकश में जब उलझ 
 जाता है दिल मेरा
खोया..खोया.. रहता है जब
अकेलेपन में साया मेरा
उस अँधेरी रात के
उजले तारे हो तुम
कैसे लिख दू लफ़्ज़ों में
मेरे हमसफ़र हो तुम
      नेहा 'अमृता'

Tuesday, June 9, 2020

तू लौट के जब घर कभी नहीं आएगा

तुम तो लूट बैठे हो

सब कुछ अपना हार कर
दिन का सुख-चैन
रातों की नींद वार कर

तुम तो खो चुके हो
अपने खवाबो की उड़ान में
तुम्हे क्या होश-ओ-खबर
क्या हो रहा है हिंदुस्तान में

तुम तो सो गए हो
अपनी ही दुनिया के हो गए हो
तुम्हे क्या फर्क पड़ता है
तेज़ हवाओ से
किसी की चीख निकले तो निकले
दम कब घुटता है तुम्हारा 

रोते हुए चट्टानों से

तुम्हे क्या इल्म हो इसका
कौन रातों से है भूखा सोया
तुम्हे क्या परवाह है
देश तुम्हारी लापरवाही से
क्या कुछ है खोया

तुम बस मगन रहो
अपनी बनाये  जाल में 

तुम्हे क्या परवाह है

क्या हो रहा है

तुम्हारे बिहार में


तुम अमीरों के हो कर रह जाओगे
तुम बदनामी में खो जाओगे
तुम्हे जचता नहीं ईमानदारी का सूखा खाना
तुम्हे तो अभी और दूर है जाना


फिर लौट एक दिन
नंगे पाँव घर आओगे
फिर रोओगे- पछताओगे

अब भी वक़्त है सम्हाल जा
देख जमाने का रास्ता

खुद घर को निकल जा
माँ-बाप के आंगन में खिले फूल चाहे कम
पर सुना अंगना उसे भी बहुत सताएगा

तू लौट के जब घर कभी नहीं आएगा



नेहा ‘अमृता’
राजकोट (गुजरात)


Wednesday, May 20, 2020

आख़िरी ख़त

आख़िरी ख़त जब तुमने लिखा होगा
मेरे नाम का

लिखते वक़्त कुछ याद आई होगी
भूली बिसरी बाते हमारी

हर एक लम्हा हमारे महोब्बत का
तेरे ख़त को बयां कर रहा होगा

तू चाहे जितने भी दूर होने की वजह दे दे
तेरी हर धड़कन में मेरा ही नाम होगा

तूने शायद लिया ना हो मेरा नाम
पर तेरी भींगी पलकों की नमी
वफ़ा का सबूत होगा


Tu mujhe kist-kist me mila kyun hai

Tu mujhe kist-kist me mila kyun hai ek dafaa mujhe mila kyun nahi Tu mila mujhe shaam ke mod pe subah tu mujhe mila kyun nahi zindagi jab berang ho chali kyun dhoop ban kar tu khila nahi Tu mujhe kist-kist me mila kyun hai ek dafaa mujhe mila kyun nahi Garr tu hai shankh mere naseeb ka to kyun sukoon mujhe mila nahi labb pe garr hai khamoshi meri to dastaaan meri tu abhi tak kyun suna nahi Tu mujhe kist-kist me mila kyun hai ek dafaa mujhe mila kyun nahi Mai wo shaam hu jiski subah... mai wo shaam hu jiski subah dekhi nahi kabhi parindo ne Tu mujhe kist-kist me mila kyun hai ek dafaa mujhe mila kyun nahi

दोस्ती

  कहाँ से शुरू करू  दोस्ती के मतलब बताना थाम ले जो हाथ  बिन मेरे कुछ बोले वो है असली दोस्त कहाँ से शुरू करू दोस्ती की दहलीज़  पर खड़े हो कर  ब...